बृहस्पति के चंद्रमा पर लावा की झील

Posted on 25-Jun-2015 03:18 PM




वाशिंगटन। अमेरिका में एक अत्यधिक शक्तिशाली दूरबीन ने बृहस्पति ग्रह के चंद्रमा ’लो’ पर अवस्थित लावा की एक विशाल झील ढंूढ़ निकाली है। इस चंद्रमा का पता इटली के विख्यात वैज्ञानिक गैलीलियो ने सन् 1610 ई. में लगाया था।
सर्वाधिक सक्रिय पिंड
वैज्ञानिकों का कहना है कि ’लो’ हमारी सौर प्रणाली में भूगर्भ विज्ञान के दृष्टिकोण से सर्वाधिक सक्रिय पिंड है। इस पर सैकड़ों ज्वालामुखी सक्रिय हैं। यह उपग्रह मुख्यतः सल्फर और सल्फर डाई आॅक्साइड से आवृत्त है। इस उपग्रह का नाम लो नोर्से के अग्नि और अव्यवस्था के देवता लोकी के नाम पर रखा गया है। ज्वालामुखियों के विस्फोट के इस मंजर को पैटेरा कहते हैं।
घनीभूत लावा की परत
लावा की इस झील पर घनीभूत लावा की परत विद्यमान है। यह परत वारहा झील में डूब जाती है। क्योंकि ज्वालामुखी की सक्रियता के कारण द्रव लावा इसमें जमा हो जाता है। जिसके नीचे पुरानी परत डूब जाती है। कुछ दिन बाद यह द्रव पुनः जमकर ठोस बन जाता है। इससे निकले तापमान का पृथ्वी से पता चल जाता है। दो सौ मीटर व्यास का उपग्रह
यह उपग्रह इतना छोटा था कि कुछ दिन पहले तक धरती से इसकी सतह के बारे मंे अधिकतर चीजों का पता ही नहीं चल पाता था। इसका व्यास मात्र 200 किलोमीटर था। जबकि पृथ्वी से इसकी दूरी कम से कम 37 करोड़ 30 लाख मील है। इसकी सतह को अमेरिका के आरीजोना प्रांत में लगे विशाल दूरबीन से बारीकी से देखा जा सका है। जिसमें दो दर्पण लगे हैं।
प्रकाश का समन्वय
वैधशाला के वरिष्ठ वैज्ञानिक आल कोनार्ड ने बताया कि हम दो विशाल दर्पणों से प्राप्त प्रकाश को समन्वय के साथ मिलाते हैं जिससे दर्पण एकाकार हो जाते हैं। इस तरह हमने पहली बार झील के विभिन्न भागों से प्राप्त दीप्तियों का सही पता लगाया है।


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