तुलसीदास चौपाईयाँ

Posted on 20-Jul-2016 11:33 AM




दरस परस मज्जन अरु पाना,

हरइ पाप कह बेद पुराना।

नदी पुनीत अमित महिमा अति,

कहि सकइ सारदा बिमल मति।।

भावार्थ:- वेद-पुराण कहते हैं कि श्री सरयूजी का दर्शन, स्पर्श, स्नान और जलपान पापों को हरता है। यह नदी बड़ी ही पवित्र है, इसकी महिमा अनन्त है, जिसे विमल बुद्धि वाली  सरस्वतीजी भी नहीं कह सकतीं।

राम धामदा पुरी सुहावनि,

लोक समस्त बिदित अति पावनि।

चारि खानि जग जीव अपारा,

अवध तजें तनु नहिं संसारा।।

भावार्थ:- यह शोभायमान अयोध्यापुरी श्री रामचन्द्रजी के परमधाम की देने वाली है, सब लोकों में प्रसिद्ध है और अत्यन्त पवित्र है। जगत में (अण्डज, स्वेदज, उद्भिज्ज और जरायुज) चार खानि (प्रकार) के अनन्त जीव हैं, इनमें से जो कोई भी अयोध्याजी में शरीर छोड़ते हैं, वे फिर संसार में नहीं आते (जन्म-मृत्यु के चक्कर से छूटकर भगवान के परमधाम में निवास करते हैं)।


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