जप के 20 नियम

Posted on 23-Dec-2015 04:30 PM




1. जहाँ तक सम्भव हो वहाँ तक गुरू द्वारा प्राप्त मंत्र की अथवा किसी भी मंत्र की अथवा परमात्मा के किसी भी एक नाम की 1 से 200 माला जप करो।
2. रूद्राक्ष अथवा तुलसी की माला का उपयोग करो। 
3. माला फिराने के लिए दाएँ हाथ के अँगूठे और बिचली (मध्यमा या अनामिका उँगली का ही उपयोग करो। 
4. माला नाभि के नीचे नहीं लटकनी चाहिए। मालायुक्त दायाँ हाथ हृदय के पास अथवा नाक के पास रखो। 
5. माला ढंके रखो जिससे वह तुम्हें या अन्य के देखने में न आये। गौमुखी अथवा स्वच्छ वस्त्र का उपयोग करो।
6. एक माला का जप पूरा हो फिर माला को घुमा दो। सुमेरू के मनके को लांघना नहीं चाहिए। 
7. जहाँ तक सम्भव हो वहाँ तक मानसिक जप करो। यदि मन चंचल हो जाय तो जप जितने जल्दी हो सके प्रारम्भ कर दो।
8. प्रातः काल जप के लिए बैठने के पूर्व या तो स्नान कर लो अथवा हाथ पैर मुँह धो डालो। मध्यान्ह अथवा संध्या काल में यह कार्य जरूरी नहीं परन्तु संभव हो तो हाथ पैर अवश्य धो लेना चाहिए। जब कभी समय मिले जप करते रहो। मुख्यतः प्रातः काल मध्यान्ह तथा सन्ध्याकाल और रात्रि में सोने के पहले जप अवश्य करना चाहिए। 
9. जप के साथ या तो अपने आराध्य देव का ध्यान करो अथवा तो प्राणायाम करो। अपने आराध्यदेव का चित्र अथवा प्रतिमा अपने सम्मुख रखो। 
10. जब तुम जप कर रहे हो उस समय मंत्र के अर्थ पर विचार करते रहो। 
11. मंत्र के प्रत्येक अक्षर का बराबर सच्चे रूप में उच्चारण करो। 
12. मंत्रजप न तो बहुत जल्दी और न तो बहुत धीरे करो। जब तुम्हारा मन चंचल बन जाय तब अपने जप की गति बढ़ा दी। 
13. जप के समय मौन धारण करो और उस समय अपने सांसारिक कार्यों के साथ सम्बन्ध न रखो। 
14. पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुँह रखो। जब तक हो सके तब तक प्रतिदिन एक ही स्थान पर एक ही समय जप के लिए आसनस्थ होकर बैठो। मंदिर नदी का किनारा अथवा बरगद पीपल के वृक्ष के नीचे की जगह जप करने के लिए योग्य स्थान है। 
15. भगवान के पास किसी सांसारिक वस्तु की याचना न करो। 
16. जब तुम जप कर रहे हो उस समय ऐसा अनुभव करो कि भगवान की करूणा से तुम्हारा हृदय निर्मल होता जा रहा है और चित्त सुदृढ़ बन रहा है। 
17. अपने गुरूमंत्र को सबके सामने प्रकट न करो। 
18. जप के समय एक ही आसन पर हिले-डुले बिना ही स्थिर बैठने का अभ्यास करो। 
19. जप का नियमित हिसाब रखो। उसकी संख्या को क्रमशः धीरे-धीरे बढ़ाने का प्रयत्न करो। 
20. मानसिक जप को सदा जारी रखने का प्रयत्न करो। जब तुम अपना कार्य कर रहे हो। उस समय भी मन से जप करते रहो।


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