बंधन व मोक्ष का कारण है-मन

Posted on 20-May-2015 01:44 PM




अध्यात्म शास्त्रों में मन को ही बंधन और मोक्ष का कारण बताया गया है। मनोवेत्ता भी इस तथ्य से परिचित हैं कि मन में अभूतपूर्व गति, दिव्यशक्ति, तेजस्विता एवं नियंत्रण शक्ति है। इसकी सहायता से ही सभी कार्य होते हैं। मन के बिना कोई कर्म नहीं हो सकता।
भूत, भविष्य और वर्तमान सभी मन में ही रहते हैं। ज्ञान, चिंतन, मनन, धैर्य आदि इसके कारण ही बन पड़ते हैं। शुद्ध मन जहाँ अनेक दिव्य क्षमताओं का भंडारा है, वहीं अशुद्ध या विकृत मनःस्थिति रोग, शोक एवं आधिव्याधि का कारण बनता है।
महर्षि पतंजलि ने योगदर्शन में चित्तवृत्तियों के निरोध को योग कहा है। अनियंत्रित, अस्त-व्यस्त और भ्रांतियों में भटकने वाली मनःस्थिति को मानवी क्षमताओं के अपव्यय एवं भक्षण के लिए उत्तरदायी बताया है और इसे दिशा विशेष में नियोजित रखने का परामर्श भी दिया है। गीतकार ने भी मन को ही मनुष्य का मित्र एवं शत्रु ठहराया है और इसे भटकाव से उबारकर अपना भविष्य बनाने का परामर्श दिया है।
   सुप्रसिद्ध मनोविज्ञानी हेक ड्यूक ने अपनी पुस्तक -’माइंड एण्ड हेल्थ’ में शरीर पर पड़ने वाले मानसिक प्रभाव का सुविस्तृत पर्यवेक्षण प्रस्तुत करते हुए कहा है कि शरीर पर आहार के व्यतिक्रम का प्रभाव तो पड़ता ही है, अभाव व पोषक तत्वों की कमी भी अपनी प्रतिक्रिया छोड़ती है। काया पर सर्वाधिक प्रभाव व्यक्ति की अपनी मनःस्थिति का पड़ता है। यह प्रभाव-प्रतिक्रिया नाडीमंडल पर 36 प्रतिशत, अंतःस्त्रावी हार्मोन ग्रंथियों पर 56 प्रतिशत एवं मांसपेशियों पर 8 प्रतिशत पाया गया है।
आज की प्रचलित तमाम उपचार-विधियों-पैथियों एवं नवीनतम औषधियों के बावजूद अनेक प्रकार के रोगों की बाढ़-सी आयी हुई है। ऐसी परिस्थितियों में रोग निवारण का सबसे सस्ता एवं हानिरहित सुनिश्चित तरीका निर्धारण करना होगा। इसके लिए रोगोत्पत्ति के मूल कारण मनःस्थिति की गहन जाँच-पड़ताल अपनाने पर ही रूग्णता पर विजय पायी जा सकती है।
अब समय आ गया है जब ’होप’ अर्थात् आशा, ’फेथ’ अर्थात् श्रद्धा, ’काॅन्फीडेंस’ अर्थात् आत्मविश्वास, ’विल’ अर्थात् इच्छाशक्ति एवं ’सजेशन’ अर्थात् स्वसंकेत जैसे प्रयासों को स्वास्थ्य संवर्द्धन के क्षेत्र में प्रयुक्त किया जाना चाहिए। मन की अतल गहराई में प्रवेश करके दूषित तत्वों की खोजबीन करके, उन्हें बाहर करने में यही तत्व समर्थ हो सकते हैं, अन्य कोई नहीं।
आज के वैज्ञानिकों ने काया के बाद बुद्धि को अधिक महत्व दिया है। बुद्धि मनुष्य की प्रतिभा-प्रखरता को निखारने, योग्यता बढ़ाने के काम आती है। प्रत्येक क्षेत्र में इसी का बोलबाला या वर्चस्व है। अभी तक मानवी व्यक्तित्व की इन दोनों स्थूल परतों-शरीर और बुद्धि को ही सर्वत्र महत्व मिलता रहा है। इन दोनों की अपेक्षा मन अधिक सूक्ष्म है। प्रत्यक्ष रूप से इसकी भूमिका दिखाई नहीं पड़ने से अधिकांश व्यक्ति इसको महत्वहीन समझते हैं जबकि बुद्धि और शरीर दोनों ही मन के इशारे पर ही चलते हैं। इस तथ्य की पुष्टि अब अनुसंधानकर्ता, मनोवेत्ताओं ने भी की है कि बीमारियों की जड़ें शरीर में नहीं, मन में छिपी होती है।


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