आनंद के पर्याय है श्रीकृष्ण

Posted on 26-Jul-2016 02:16 PM




मान्यता है कि एकमात्र पूर्ण अवतार श्री कृष्ण ही हुए हैं। बाकी अवतार अंश यानी छह,आठ,दस या बारह कलाओं के अवतार हैं। श्रीकृष्ण सोलह कलाओं के अवतार हैं। सोलह कलाओं में मनुष्य और दिव्य की जो भी क्षमतायें हो सकती हैं, पूरी तरह निखर कर आती हैं। फिर श्रीकृष्ण स्वयं भी कहते हैं कि मैं अव्यय पुरूष हूँ। मुझे ही केन्द्र में रखकर सृष्टि का विकास हुआ है। उनके श्री मुख से जो कहा गया है, वह गूढ़ अर्थ रखता है। विकास हुआ अर्थात् वह फूल की तरह खिली। श्रीकृष्ण उस खिलावट के केन्द्र में हैं तो हम सब उन्ही के अंश हैं। सत्व, रज और तम के कुछ विकार भी अपने से जुड़े होते हैं। श्रीकृष्ण जब सब कुछ छोड़कर जैसी भी स्थिति में हो अपनी शरण में आने के लिये कहते हैं तो आशय यही है कि उन्हे अपने भीतर ढूँढ़ लें। श्रीकृष्ण, भगवान विष्णु के अवतार हैं। वे स्वयं विष्णु हैं, अवतार भी हैं और मनुष्य के रूप में वासुदेव और देवकी के पुत्र भी हैं। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु सृष्टि के प्रथम अक्षर पुरूष हैं, उन्हीं की नाभि से ब्रह्मा उन्पन्न होते हैं और ब्रह्मा से भगवान शिव। ब्रह्मा के नेत्रों से उत्पन्न प्राण रूप सूर्य को शिव रूप् भी कहा जाता है। शिव सर्वत्र पूजित हैं। भगवान श्रीकृष्ण की पहली विशेषता यह है कि पूरे समय प्रसन्न मुद्रा में रहते हैं। उन्हें कभी किसी ने उदास नहीं पाया। घोर संकट के समय में भी वे कभी खिन्न नहीं हुए। वे प्रकृति के प्रतिनिधि रहे। प्रकृति की हर चीज हँसती-गाती हैं। हवा, पानी, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, आकाश आदि सबका अपना संगीत है। कृष्ण के व्यक्तित्व का कण-कण प्रफुल्लित रहता है। उनके अंग-अंग में संगीत बहता है। उनकी मुस्कुराहट देखकर हर किसी का मन प्रसन्न हो जाता है। यह मुस्कान आसानी से नहीं आ सकती। श्रीकृष्ण की गीता के अनुसार उसके लिये मन बहुत पवित्र चाहिये। मन में कुछ दूसरों के लिये करने का भाव होना चाहिये। कुछ मांगे या अपेक्षा किये बिना जो किया जाता है, उसे प्रसन्नता आती है। कृष्ण ने ही परिस्थिति को हँसकर जिया। जीवन को स्वभाविक ढंग से, खेल-खेल में जी कर दिखा गए। इसलिये कोई व्यक्ति अथवा परिस्थिति उन्हें खिन्न नहीं कर सकी। कृष्ण आनन्द के पर्याय बने रहे।


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