यज्ञ के प्रकार

Posted on 22-Apr-2015 03:40 PM




ंवेद एवं अन्य ग्रंथों में कई प्रकार के यज्ञ बताये गए हैं। अलग-अलग देवताओं के लिए अलग-अलग यज्ञ किये जाते हैं। वास्तव में यज्ञ देवताओं को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है।
अनेक प्रयोजनों के लिए, अनेक कामनाओं की पूर्ति के लिए, अनेक विधानों के साथ अनेक विशिष्ट यज्ञ भी किये जाते हैं। दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ करके चार पुत्र प्राप्त किये थे। अग्निपुराण तथा उपनिषदों में पंचाग्नि-विद्या में यज्ञ का रहस्य बताया गया है। विश्वामित्र ने असुरता निवारण के लिए यज्ञ किया था। लंका युद्ध के बाद राम ने दस अश्वमेघ यज्ञ किये थे। महाभारत के पश्चात् श्री कृष्ण ने पांडवों के साथ महायज्ञ कराया था। हर यज्ञ का एक विशेष उद्देश्य होता है। गीता के 4/20-30 श्लोकों में यज्ञ निम्न प्रकार के बताये गए हैं।
योगियों का दैव यज्ञ-सूर्य, अग्नि देवताओं से अपनी इन्द्रियों का संबंध अनुभव करते हुए, उस संबंध की शक्ति को बढ़ाना।
ब्रह्मयज्ञ-ज्ञानरूपी ब्रह्म अग्नि में अपने कार्म बंधनों का होम। 
संयम यज्ञ-संयम की तपरूपी अग्नि में इन्द्रियों की वासना को जलाना।
इन्द्रिय यज्ञ- इन्द्रिय शक्ति को मर्यादित सीमा में प्रयुक्त करके उसकी शक्ति का सदुपयोग करना।
आत्म यज्ञ- आत्मा रूपी अग्नि में प्राणों की गतिविधि का उत्सर्ग करना।
द्रव्य यज्ञ- अपनी भौतिक सम्पदा को सत्कर्मों में लगाना।तप यज्ञ- शारीरिक कष्ट, सहिष्णुता एवं द्धन्द्ध को सहन करने का उपार्जन।
योग यज्ञ- योगाभ्यास द्वारा आत्मविकास करना।
स्वाध्याय यज्ञ - सद्ग्रंथों व सत्संग एवं चिन्तन-मनन द्वारा आत्मज्ञान का सम्पादन।
ज्ञान यज्ञ - सद्ज्ञान की अभिवृद्धि।
प्राण यज्ञ- अपान में प्राण का लय, प्राण में अपान का समर्पण, इनकी गतियों का संतुलन करने के लिए कुम्भक का अभ्यास।
आहार यज्ञ- भोजन की पवित्रता एवं उत्कृष्टता का साधन।
इन सब यज्ञों-साधनों से मनुष्यों के सब पाप नष्ट होते हैं, अंत में ब्रह्म की प्राप्ति होती है।


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