वास्तव में पुरुश कौन ?

Posted on 11-May-2015 11:06 AM




संत मीराबाई के जीवन की एक घटना बड़ी प्रसिद्ध है। मीरा भगवान कृष्ण की अनन्य भक्त थीं। वे ईश्वर के प्रति अपने प्रेम के लिए विख्यात थीं। उन्होंने अपने आराध्य की खोज में अपना राज्य छोड़ दिया। वे अपने राज्य से बहुत दूर जाकर एक कृष्ण मंदिर में ठहरीं। मंदिर के पुजारी ने उन्हें मंदिर मंे आने से रोकते हुए कहा, ’नारियों को इस मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है।’ ये शब्द सुनकर मीरा ने पुजारी से कहा, ’क्या भगवान कृष्ण के अतिरिक्त इस मंदिर में कोई दूसरा पुरुष है ? क्या तुम स्वयं को पुरुष मानते हो ? कोई भी नारी बने बिना उसके मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकता। उसके मंदिर में प्रवेश करने के लिए तुम्हें नारी बनना होगा।’
मीरा जो कहने की कोशिश कर रही थीं, उसे समझने की कोशिश करें। उन्होंने ’नारी’ किसे कहा? उन्होंने यहाँ किसी को स्थूल शरीर या आकृति के कारण नारी नहीं कहा। उनका अर्थ तो यह था कि जो भी इंसान प्रकृति के प्रति ग्रहणशील है, वह नारी है। वे यह संकेत करना चाहती थीं कि जो स्वभाव से लचीला और निःस्वार्थ देने की भावना रखता है..... सिर्फ वही ईश्वर के पास पहुँच सकता है, ईश्वर के तादात्म्य में रह सकता है। 
हर इंसान कभी ग्रहणशील होता है तो कभी नहीं। जब वह ग्रहणशील नहीं होता यानी उस वक्त वह पुरुष है। जब वह ग्रहणशील होता है तब वह स्त्री होता है। ऐसा पुरुषों और महिलाओं के शरीरों के कारण नहीं कहा जा रहा है बल्कि उन गुणों के कारण कहा जा रहा है, जिन्होंने उन्हें आकार दिया है। हर इंसान के अंदर दोनों बातें होती हैं। जब आप श्रवण करते हैं तब स्त्री बनकर करते हैं। जब आप सुन रहे हैं तब आप ग्रहण कर रहे हैं, आपके द्वारा कुछ लिया जा रहा है यानी आप ग्रहणशील होते हैं। जब भी आप सत्य का श्रवण करते हैं तब आप ग्रहणशील होकर, स्त्री बनकर ही करते हैं। जब आप भक्ति कर रहे हैं तब ग्रहणशील होकर, स्त्री बनकर ही भक्ति होती है। जब आप सेवा कर रहे हैं तब पुरुष बन जाते हैं, फिर चाहे वह स्त्री क्यों न हो। जब आप सेवा में हैं तब कोई भी हो, वह पुरुष है। जब श्रवण में हैं तब आप स्त्री हैं यानी आप ग्रहणशील हैं। आपके अंदर ग्रहणशीलता बढ़ रही है। जो मौन में दिया जा रहा है उसे आप ग्रहण कर रहे हैं।
जब मीरा ने उस पुजारी से यह बात कही तब पुजारी के लिए वह बात बहुत बड़ा झटका (सबक) थी। मंदिर में रहकर भी वह पुरुष बनकर बैठा है यानी अब तक वह कृष्ण के प्रति ग्रहणशील नहीं बना है। वह कैसा पुजारी है ? यदि मीरा के पास आज के शब्द होते तो वह कहती, ’पूरे ब्रह्मण्ड में एक ही पुरुष है, तुम स्त्री हो कि नहीं यह पक्का करो, पता करो।’


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