Posted on 07 April, 2015 at 4:00 PM
उत्तरप्रदेश के कुशीनगर जिले में रामकोल स्थित सनातन विश्व मंदिर में सभी देवी-देवताओं और संत महात्माओं के दर्शन हो जाते हैं। देवरिया से 22 किमी और महात्मा बुद्ध के परिनिर्वाण स्थल से महज 20 किमी दूर स्थित यह इलाका अपने पौराणिक और धार्मिक महत्व के कारण विश्वविख्यात है।
मंदिर की स्थापना 1990 में
कुशीनगर में महात्मा बुद्ध का परिनिर्वाण हुआ था और यहीं उन्होंने अपने जीवन के आखिरी चरण में जनकल्याण के लिए लोगों को दीक्षित किया था। इस वजह से बौद्ध मतानुयायियों के लिए यह विशिष्ट स्थान एक प्रमुख बौद्ध तीर्थस्थल है। वैसे भारतीय संस्कृति में अनेकानेक देवी-देवताओं का पूजन करते हैं। इससे प्रेरणा लेकर परमहंस स्वामी भगवानन्द ने इस स्थान पर 1990 में एक ऐसे मंदिर की स्थापना की जिसमें विश्व के सभी देवी-देवताओं व महापुरुषों के एक साथ दर्शन हो जाते हैं।
शिवलिंग जैसी आकृति
पाँच मंजिला इस मंदिर की बनावट इस प्रकार की है कि दूर से देखने पर यह भगवान शंकर के शिवलिंग की तरह दिखाई देता है। मंदिर के प्रथम तल में ज्ञान गुफा है जिसमें परमहंस आश्रम के पहले संत स्वामी सत्संगी महाराज की मूर्ति स्थापित है। द्वितीय तल पर भारतीय संस्कृति के विख्यात संत अत्रि ऋषि की पत्नी महासती अनुसूईया माता का भव्य मंदिर है, जिसके चारों और नवदुर्गा की मूर्तियाँ हैं। नारी शक्ति को प्रदर्शित करने वाली भारत की महान नारियों रानी दुर्गावती, रानी लक्ष्मीबाई, रानी जीजाबाई, भगनि निवेदिता, बसरा की मशहूर तपस्विनी राबिया, इटली की मशहूर सेन्ट कैथरिन तथा सती सावित्री की मूर्तियाँ भी मंदिर में स्थापित है।
सभी धर्म और सम्प्रदाय
मंदिर की तीसरी मंजिल पर भारत समेत विश्व के सभी संतों की मूर्तियाँ स्थापित है। इनमें प्रमुख रुप से स्वामी विवेकानन्द, चैतन्य महाप्रभु, देवर्षि नारद, साईं बाबा, रामकृष्ण परमहंस, महर्षि वेदव्यास, महर्षि वाल्मीकि, गुरु नानकदेव के साथ सन्त ज्ञानेश्वर महाराज, परम भक्त प्रह्लाद तथा तपस्वी ध्रुव की मूर्तियाँ शामिल है। चैथे माले पर भी महान संतों की मूर्तियाँ है।
इनमें ईसाई धर्म के महान् सन्त फाॅसिस और सन्त अफलातून जिन्हें सुकरात के प्रसिद्ध शिष्य प्लेटो के नाम से भी जाना जाता है कि मूर्तियाँ विशेष रूप से दर्शनीय है। इसी तल पर यूनान के ब्रस्त्रज्ञानी महात्मा छायोजिनिस, चीन के महान् सन्त कन्फयूशस, यूनान के महान् सन्त सुकरात और डाॅ. मार्टिन लूथर की मूर्तियाँ भी स्थापित है। मंदिर के चैथे तल पर ही मुगल बादशाह के बड़े पुत्र दारा शिकोह की मूर्ति भी स्थापित है। इसी तर्ज पर यहाँ स्थापित यहूदी धर्मगुरु हजरत मूसा की मूर्ति बहुत अद्भूत है। मंदिर की चोटी यानी पांचवा तल बहुत ही मनोरम है। इसे कैलाशपुरी कहते हैं। इस तल के प्रवेश द्वार पर भारत के दो महान् योद्धाओं शिवाजी और राणा प्रताप की मूर्तियाँ स्थापित हैं। मंदिर के गुम्बद के चारों और बारह ज्योर्तिलिंग बने हैं। यह मंदिर सभी धर्म एवं सम्प्रदाय के लोगों को एक सूत्र में बाँधने का कार्य करता है। यह मंदिर श्रद्धालुओं एवं दर्शनार्थियों के बीच रामकोला धाम के नाम से विख्यात हो चुका है।
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